Saturday, September 24, 2011

गया में श्राद्ध करना श्रेष्ठ क्यों माना जाता है?


  • श्राद्ध सिखाते हैं अपनों को याद रखना
  • यहां करें श्राद्ध, होगा पितरों का उद्धार
  • यहां श्राद्ध करने से पितरों को स्वर्ग मिलता है
  • जानिए, कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध
  • जन्म-मरण से मुक्ति दिलाता है यहां किया श्राद्ध
पिण्डदान श्राद्ध के लिए बिहार में स्थित गया तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पितृ पक्ष में यहां पिण्डदान श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि जिसका भी पिण्डदान श्राद्ध यहां किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। गया तीर्थ को तर्पण, श्राद्ध पिण्डदान के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है इसके पीछे एक धार्मिक कथा है। अखिल भारतीय ज्योतिष परिषद के राष्ट्रीय महासचिव आचार्य कृष्णदत्त शर्मा के अनुसार वह कथा इस प्रकार है-  

प्राचीन काल में गयासुर नामक एक शक्तिशाली असुर भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपनी तपस्या से देवताओं को चिंतित कर रखा था। उनकी प्रार्थना पर विष्णु अन्य समस्त देवता गयासुर की तपस्या भंग करने उसके पास पहुंचे और वरदान मांगने के लिए कहा। गयासुर ने स्वयं को देवी-देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान मांगा।

वरदान मिलते ही स्थिति यह हो गई कि उसे देख या छू लेने मात्र से ही घोर पापी भी स्वर्ग में जाने लगे। यह देखकर धर्मराज भी चिंतित हो गए। इस समस्या से निपटने के लिए देवताओं ने छलपूर्वक एक यज्ञ के नाम पर गयासुर का संपूर्ण शरीर मांग लिया। गयासुर अपना शरीर देने के लिए उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर मुख करके लेट गया।

मान्यता है कि उसका शरीर पांच कोस में फैला हुआ था इसलिए उस पांच कोस के भूखण्ड का नाम गया पड़ गया। गयासुर के पुण्य प्रभाव से ही वह स्थान तीर्थ के रूप में स्थापित हो गया। गया में पहले विविधि नामों से 360 वेदियां थी लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं। आमतौर पर इन्हीं वेदियों पर विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिण्डदान करनी जरुरी समझा जाता है।

इसके अतिरिक्त नौकुट, ब्रह्योनी, वैतरणी, मंगलागौरी, सीताकुंड, रामकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, प्रेतशिला कागबलि आदि भी पिंडदान के प्रमुख स्थल हैं।

source: dainikbhaskar