'कहाँ गायब थे मंगरू?'-किसी ने चुपके से पूछा। |
वे बोले- यार, गुमनामियाँ जाहिल मिनिस्टर था। |
बताया काम अपने महकमे का तानकर सीना- |
कि मक्खी हाँकता था सबके छोए के कनस्टर का। |
सदा रखते हैं करके नोट सब प्रोग्राम मेरा भी, |
कि कब सोया रहूंगा औ' कहाँ जलपान खाऊंगा। |
कहाँ 'परमिट' बेचूंगा, कहाँ भाषण हमारा है, |
कहाँ पर दीन-दुखियों के लिए आँसू बहाऊंगा। |
'सुना है जाँच होगी मामले की?' -पूछते हैं सब |
ज़रा गम्भीर होकर, मुँह बनाकर बुदबुदाता हूँ! |
मुझे मालूम हैं कुछ गुर निराले दाग धोने के, |
'अंहिसा लाउंड्री' में रोज़ मैं कपड़े धुलाता हूँ। |
('नई दिशा' के 9 अगस्त, 1949 के अंक में प्रकाशित) |
Saturday, June 18, 2011
मिनिस्टर मंगरू - फणीश्वर नाथ रेणु
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